उमरा के तीन अरकान हैं:
(1) इहराम
(2) तवाफ
(3) सफा और मर्वा की सई
और उसके वाजिब दो हैं:
(1) मीक़ात से इहराम बाँधना
(2) बाल मुडवाना या कतरवाना
यदि किसी व्यक्ति ने रुक्न को छोड़ दिया तो उसका उमरा नहीं होगा और अगर वाजिब को छोड़ दिया तो उस पर फ़िदया देना जरूरी है अर्थात् एक बकरा या ऊँट ज़बह कर के मक्का के निर्धनों में बांट दे।
(1) इहरामः
इहराम हज्ज एवं उमरा का पहला अरकान है जिसका मतलब होता है” इहराम का कपड़ा पहन कर तल्बिया कहते हुए हज्ज व उमरा के कामों को शुरू करने की नीयत कर लेना “।
उमरे का इहराम मीक़ात से शुरू होता है लेकिन यह हो सकता है कि इहराम का कपड़ा पहले पहन लिया जाए और नीयत मीक़ात से की जाए ।
मीक़ात से इहराम बांधे बिना गुज़रना जाइज़ नहीं है यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसे मीक़ात वापस आकर फिर से इहराम की नीयत करनी होगी या मक्का पहुँचने के बाद फ़िदया देना होगा
इहराम बांधने का तरीक़ा
मीक़ात पहुंचने के बाद इहराम बांधने से पहेले खूब पाक हो जायें। बाल बनाने की ज़रुरत हो तो बाल बना लें, कांख और नाभि के नीचे के बालों को साफ कर लें और नाखुन काट लें। उसके बाद स्नान करें क्योंकि इहराम का यह स्नान अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहे वसल्लम की सुन्नत है।
स्नान से फारिग होकर मर्दों के लिए अपने शरीर, सर तथा दाढी के बालों में सुगंध लगाना भी सुन्नत है चाहे उसका असर बाद में देर तक ही क्यों न रहे।
पुरुष दो सफेद और साफ कपड़े पहने, जब की महिलायें अपने आम कपड़े ही में इहराम बाँधेंगी, इस शर्त के साथ कि कपड़े मे कोई श्रृंगार न हो, किन्तु नकाब नही बाँधेंगी और दस्ताना नहीं पहनेंगी, हाँ अगर गैर मर्द सामने से गुज़रे तो नह चेहरे का पर्दा करने की पाबंद होंगी। यदि कोई महिला मासिक चक्र की स्थिति में या निफ़ास की हालत में है तब भी वह स्नान कर के इहराम की नीयत कर लेगी।
हैज़ और निफ़ास वाली महिलाओं के अतिरिक्त बाक़ी सभी लोग यदि फ़र्ज नमाज़ का समय है तो फर्ज नमाज़ पढ़ कर और यदि नमाज़ का समय नहीं है तो दो रकअत वुजू की सुन्नत पढ़ कर नीयत कर लें। इहराम की नीयत इन शब्दों में होगी
لبيك اللهم عمرة ” लब्बैक अल्लाहुम्म उमतन “
यदि रास्ते में किसी प्रकार की रुकावट का डर हो तो यह भी पढ़ लें-
اللهم إن حبسني حابس فمحلي حيث حبستني अल्लाहुम्म इन हसबनी हाबिसुन फ, म, हिली हैसु ह, ब, सत्नी मतलबः” या अल्लाह !
यदि मैं किसी कारणवश रुक जाऊं, तो वहीं हलाल हो जाऊंगी” । फिर तल्बिया पढ़ना शुरू कर दें तल्बिया के सब्द इस प्रकार हैं-
لبيك اللهم لبيك لبيك لاشريك لك لبيك إن الحمد والنعمة لك والملك لا شريك لك متفق عليه
इस प्रकार नीयत हज्जे तमत्तु करने वाले करेंगे जबकि इफराद और क़िरान करने वालों की नीयत होगी
“अल्लाहुम्म लब्बैक उमरतन व हज्जन “
” लब्बैक अल्लाहुम्म लब्बैक लब्बैक ला शरीक लक लब्बैक, इन्नल हम्द वन्निअम, त ल, क वलमुल्क ला शरीक लक“
मतलब” मैं हाजिर हूँ, ऐ अल्लाह मैं हाजिर हूँ, मैं हाजिर हूँ, तेरा कोई साझी नहीं, मैं हाजिर हूँ, हर तरह की तारीफ़, हर तोहफ़ा और बादशाहत सिर्फ तेरे लिए है, तेरा कोई साझी नहीं”। उमरा करने वाला व्यक्ति मक्का पहुंचने तक ज़ोर ज़ोर से तल्बियाः पुकारे। अल्लाह के रसुल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया
“जब कोई मुसलमान तल्बिया पढ़ता है तो उसके दायें बायें पत्थर झाड़ियाँ भी तल्बिया पढ़ना शुरु कर देते हैं” (बहेक़ी, इब्नेमाजः)
जब कि महिलायें बुलंद आवाज़ में तल्बिया नही पुकारेंगी बल्कि उन्हें चाहिए कि धीमें आवाज में ही पूरे रास्ते तल्बिया पुकारती रहें।
इहराम बाँध लेने के बाद कुछ लोग फोटो खींचवाते हैं और महिलायें परदा का ख्याल नहीं करती हालांकि यह बिल्कुल गलत है। कुछ व्यक्ति मीक़ात से ही अपना दायाँ कंधा खोल लेते हैं, हालांकि ऐसा केवल तवाफ कुदूम में करना चाहीए जो कि केवल पुरुषों के साथ ख़ास है।
इहराम के ममनूआतः
इहराम पहन के नीयत कर लेने के बाद कुछ काम हराम हो जाते हैं जैसे शरीर के किसी भाग से बाल उखेड़ना या कटवाना, सुगंध लगाना, बीवी से परसनल बातें करना, दस्ताने पहनना, शिकार करना, पुरुष का सिला हुआ कपड़ा पहनना और सर को ढाँपना आदि, लेकिन इहराम की स्थिति में नहाना, सर को खुजलाना, छतरी से साया करना और बेल्ट बांधना जाइज़ है।
(2) का’बा का तवाफ़ः
मस्जिद हराम में पहुंचकर तल्बिया बन्द कर दें यदि वजू टूट गया हो तो वुजू कर लें फिर हज अस्वद (काला पत्थर) के पास आयें, अपना दायाँ कंधा नंगा कर लें, यदि आसानी से हज्र अस्वद को बूसा दे सकते हों तो ठीक है वरना हाथ लगाकर उसे चूम लें अगर ऐसा करना भी मुमकिन न हो तो उसकी ओर हाथ से इशारा कर के ज़बान से कहें-
بسم الله الله اكبر बिस्मिल्लाहि अल्लाहू अकबर
” अल्लाह के नाम से शुरू करता हूँ अल्लाह सबसे बड़ा है”। और तवाफ़ शुरू कर दें।
शुरू के तीन चक्करों में कंधे हिलाते हुए छोटे छोटे क़दमों के साथ तेज़ तेज़ चलें, यदि भीड़ हो तो केवल कंधो को हिलाना काफी होगा। परन्तु यह आदेश स्त्रियों एवं उनके साथ चलने वाले पुरुषों के लिए नहीं है। तवाफ के दौरान ज़िक्र, इबादत एवं कुरान की आयात पढ़ते रहें हर चक्कर के लिए कोई विशेष दुआ अल्लाह के रसुल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से साबित नही है लेकिन रुक्न यमानी और हज्ञ अस्वद के बीच निचे लिखी दुआ पढ़ना मस्नून है
ربنا آتنا في دنيا حسنة وفى الآخرة حسنة وقنا عذاب النار
“रब्बना आतिना फिदुनिया ह’स’न, तंव्व फिल आख़िरति हसनतंव्वक़िना अज़ाबन्नार”
तर्जुमा : ” या अल्लाह! हमें दुनिया में अच्छाई दे और आख़िरत मे भी अच्छाई दे और हमें जहनुम की आग से बचा ” |
पता होना चाहिए कि ज़िक्र और इबादत को बुलंद आवाज में पढ़ना सही नहीं है। रुकन यमानी से गुज़रते समय यदि उसे हाथ लगा सकें तो ठीक है नहीं तो बोसा दिए और उसकी ओर हाथ से इशारा करके वहाँ से गुज़र जायें।
सात चक्कर पुरे कर के मुकामे इब्राहीम के पीछे यदि जगह मिल जाए तो ठीक है वरना मस्जिदे हराम के किसी कोने में दो रकअत नमाज़ पढ़ लें,
प्रथम रकअत में सूरः फातिहा के बाद सूरः अल-काफिरुन और दूसरी रकअत में सूरः अल-इख्लास पढ़ें।
फिर ज़मज़म का पानी पियें और अपने सर पर बहायें, उसके बाद यदि सम्भव हो तो हज्र अस्वद को चूमें वरना सीधे सफा की ओर चलें जायें।
(3) सफ़ा और मरवा की सईः
सफ़ा पहाड़ी के पास जाकर यह दुआ पढ़ें
” ईन्नस्सफा वल मर्व’त मिन शआईरिल्लाहि फमन हज्जल बै’त अविअत’म’र फ ला जुना’ह अलैहि अंय्यत्तव्व’फ बिहिमा व मन त’ तव्वअ खैरन फहु’ व खैरुल्ल’हु “
फिर पहाड़ी पर चढ़ जायें और काबा की ओर मुख कर के दोनों हाथ उठा कर तीन बार” अल्लहू अकबर ” कहें और दुआ करें। निम्नलिखित दुआ को भी तीन बार पढ़ें
निम्नलिखित दुआ को भी तीन बार पढ़ें
” लाईला’ह ईल्लल्लहु वहदहु ला शरी’क लहु लहुल मुलको व लहुल हम्दु युहयी व युमीतो व हु ‘व अला कुल्ले शैईन क़दीर । लाईला’ह इल्लल्लाहु वह’दहु ला शरी’क लहु अं’ज’ज वअ’द’हु व न’स’र अब्दहु व ह’ज़’ मल अहज़ा’ब वह’दहु “
यदि कोई तीन बार से कम पढ़ता है तो इस में भी कोई हर्ज नहीं है। फिर पहाड़ी से उतर कर मर्वा की ओर जायें। रास्ते में हर बार जब दोनों हरी निशानियों से गुज़रे तो तेज़ दौड़ें, लेकिन महिलायें तथा उनके साथ जाने वाले मर्द नहीं दौरेंगे। फिर आदत के अनुसार चलते हुए मर्वा पर पहुँचे यहाँ पहुंच कर एक चक्कर पूरा हो जाएगा।
अब यहाँ भी वही दुआयें पढ़ें जो आप ने सफा पर पढ़ा था फिर वापस सफा की ओर आयें रास्ते में पहले की तरह दो हरे स्थलों के बीच दौरें।
सफा पर पहुंच कर दूसरा चक्कर पूरा हो जाएगा।
इस तरह सात चक्कर पूरा करें आखिर चक्कर मर्वा पर पूरा होगा। सई करते समय ज़िक्र, दुआ तथा कुरआन की तिलावत में व्यस्त रहें।
(4) सर के बाल मुंडवाना या कतरवाना
सफ़ा और मर्वा की सई पूरी होने के बाद आदमी बाल मुंडवार्ले या पुरे सर के बाल छोटे करवा लें। महिलायें अपनी हर मेंदी से एक पोर के बराबर बाल कटवायें। इस तरह अब उमरा पूरा हो गया और इहराम के कारण जो चीजें हराम हो गई थीं वह हलाल हो गई।
यह तरीका उन लोगों के लिए है जिन्होंने हज्जे तमतो की नीयत की हो। लेकिन जिन लोगों ने हज्जे केरान या हज्जे इफराद की नीयत की हो वह मक्का आने के बाद केवल तवाफ़े कुद्म करके इहराम की हालत में रहेंगे।
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